बेवक्त ये अश्क आंखों से कम नहीं होता.
रोता है सारी रात क्यों ये दरिया नम नहीं होता.
हम किस – किस से शिकायत करें उनकी.
मेरे दस्तूर का लिखा वो आज हम नहीं होता.
हमें देते रहे वो मोहब्बत की हजार दांव पेज।
यह मोहब्बत का है रश्क क्यों भ्रम नहीं होता।
कतरा – कतरा बोझिल आंखों से हम उन्हें देखते.
चाहत का भुला नशा आज क्यों कम नहीं होता.
जर्रे जर्रे से शिकायत करती है मेरे अश्क़।
मेरे दिल का आशियाना क्यों नम नहीं होता।
हम शिद्दत से भूल चुके उन्हें अश्कों की बूंदों में।
सारी रात जागे दिल मोहब्बत क्यों कम नहीं होता.
अवधेश कुमार राय “अवध”
अश्क
अवधेश कुमार राय “अवध “
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waah superb hai
gazab
bahut accha
nice